जाने क्या है अंतर पैनिक अटैक, अगोराफोबिया और पैनिक डिसऑर्डर में

by Dr. Himani Singh
Panic Attack

पैनिक अटैक अधिकांशतः तीव्र भय या घबड़ाहट से पड़ने वाले दौरों को कहते हैं जो अचानक पैदा हो सकते हैं और अपेक्षाकृत थोड़े समय के लिए ही होते हैं। पैनिक अटैक आमतौर पर अचानक से शुरू होते हैं और 10 मिनट में अपने पूरे चरम सीमा तक पहुंच जाते हैं। इस अवस्‍था में व्‍यक्ति अपने होशो हवास खो बैठता है। पैनिक अटैक 15 सेकेंड से लेकर घंटों तक हो सकता है।

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पैनिक अटैक के प्रभावों में भिन्नता होती है। पैनिक अटैक का अनुभव करने वाले कई लोगों को ज्यादातर पहली बार के दौरे में दिल के दौरे या नर्वस ब्रेकडाउन का खतरा हो सकता है। पैनिक अटैक का अनुभव किसी व्यक्ति की जिंदगी के सबसे कष्टप्रद अनुभवों में से एक होता है। जो व्यक्ति पैनिक अटैक से ग्रसित होते हैं, वह अधिकतर शुरुआत में मेडिकल इमरजेंसी या फिजिशियन के संपर्क में आते हैं, क्योंकि इस रोग में इतनी तेज घबराहट होती है कि व्यक्ति को हार्ट अटैक जैसा अहसास होता है। पूरे संसार में इस रोग के होने की सम्भावना 1.5% से लेकर 5.0% तक होती है, कभी-कभार इसकी सम्भावना 3 से 5.6% तक हो सकती है। यह रोग महिलाओं में पुरुषों की तुलना में तीन गुना अधिक देखा गया है।

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अगोराफोबिया  (Agoraphobia):

यदि पैनिक अटैक बार-बार पड़ने लगे तब ऐसी अवस्था में अगोराफोबिया की स्थिति बन जाती है। जिसमें रोगी ऐसी जगहों पर जाने से घबराने लगता है जहाँ पर उसको लगता है कि मुसीबत पड़ने पर वह नहीं निकल पायेगा या उसको कोई मदद नहीं मिल पायेगी। जैसे बस, ट्रेन, लिफ्ट, पिक्चर हॉल, या बाज़ार ऐसी जगहों पर जाने से मरीज  घबराने लगता है या अपने साथ हमेशा किसी को ले जाना चाहता है। कभी-कभी अगोराफोबिया की वजह से मरीज इतना दिल में डर लेकर बैठ जाता है कि वह घर से निकलना ही बंद कर देता है और अपने आप को पूर्णतया घर  में बंद कर लेता है।

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पैनिक डिसऑर्डर :

अधिकांशतः घबराहट हमारे आसपास होने वाले कारणों की वजह से ही होती है जिसके लक्षण पैनिक अटैक जैसे ही  प्रतीत होते हैं। जैसे कि तीव्र गति से आने वाली गाड़ी से टकरा जाने का डर, किसी भयानक जानवर का डर, पानी में डूब जाने का डर, इत्यादि। ऐसी अवस्था में बाहरी कारकों के होने की वजह से मस्तिष्क में घबराहट के केंद्र सक्रिय हो जाते हैं, जो हमको इन कारकों से बचने या लड़ने का संकेत देते हैं। देखा जाये तो यह घबराहट लाभदायक होती है परन्तु जब व्यक्ति पैनिक डिसऑर्डर की अवस्था में पहुंच जाता है, तब मस्तिष्क के यह केंद्र किसी बाहरी कारकों के हुए बिना ही सक्रिय हो जाते हैं और रोग का कारण बन जाते हैं।

रिपोर्ट: डॉ.हिमानी