अस्थमा के विभिन्न प्रकार और इससे बचने के उपाय:

by Dr. Himani Singh
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अस्थमा एक आम फेफड़ों की बिमारी के रूप में जाना जाता है जो अधिकाशतः  मरीज को साँस लेने में कठिनाई का कारण बन सकता  है। यह अक्सर बचपन में शुरू होता है, हालांकि यह वयस्कों में भी विकसित हो सकता है, और किसी भी  उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है। रोगी सही उपचार और थोड़ी देखभाल के साथ  पूर्ण  रूप से  अच्छा जीवन जी सकते हैं। अस्थमा दुनिया भर में लगभग  300 मिलियन व्यक्तियों को प्रभावित करता है और यह संख्या लगातार बढ़ रही है।  संयुक्त राज्य अमेरिका में, लगभग 8.3 प्रतिशत लोग अस्थमा  से पीड़ित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार  दुनिया भर में लगभग 250,000 मौतें अस्थमा से होती हैं। भारत में 20 -30 मिलियन लोग अस्थमा का शिकार है।

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अस्थमा क्या है:

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अस्थमा (दमा) फेफड़ों की एक बीमारी है, जिसके कारण सांस लेने में कठिनाई होती है। अस्थमा होने पर सांस लेने वाली  नलियों में सूजन आ जाती है जिस कारण श्वसन मार्ग सिकुड़ जाता है। वायुमार्ग में सूजन के चलते बहुत ही जलन का अनुभव होता है और किसी भी प्रकार की  एलर्जी के लिए  उनकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है,  जिसके चलते खांसी, घरघराहट, सांस की तकलीफ और सीने में जकड़न  आदि जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। वायुमार्ग के  सूज जाने  और संकीर्ण हो जाने के कारण साँस लेने में कठिनाई होती है। अस्थमा को “ब्रोन्कियल अस्थमा” के नाम से भी जाना जाता हैं।

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अस्थमा के प्रकार:

अस्‍थमा फेफड़ों को खासा रूप से प्रभावित करता है। जिसके चलते  व्‍यक्ति को श्‍वसन संबंधी बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। अस्थमा न केवल बुर्जुगों और व्‍यस्‍कों को ही प्रभावित करता है बल्कि बच्चो को भी प्रभावित करता है। अधिकाशतः बच्चो और बड़ों में होने वाला अस्‍थमा एक ही तरह का होता है।  अस्‍थमा कई प्रकार के होते हैं। आइए जानते है विभिन्‍न प्रकार के अस्‍थमा के प्रकार के बारे में।

एलर्जिक अस्थमा: बहुत से लोगो को मौसम के बदलते ही या धूल-मिट्टी या अन्य किसी प्रकार के प्रदूषण के संपर्क में आते ही सांस लेने में परेशानी होने लगती है जो कि एलर्जिक अस्थमा  का कारण बनती हैं।

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नॉनएलर्जिक अस्थमा: इस तरह की अवस्था तब उत्पन्न होती है जब कोई व्यक्ति बहुत ही अधिक तनाव में हो या बहुत ख़ुशी के कारण तेजी से हंस रहा हो या बहुत अधिक ठण्ड लग जाने के कारण उसको सर्दी जुकाम हो गया हो। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते है कि यह अवस्था तब आती है जब कोई चीज बहुत ही चरम अवस्था पर पहुंच जाए।

मिक्सड अस्थमा: इस प्रकार का अस्थमा कई बार एलर्जिक कारणों से या कई बार नॉन एलर्जिक कारणों से हो सकता है। ऐसे में इस अवस्था में यह जानना थोड़ा मुश्किल हो जाता है कि इस प्रकार के अस्थमा के होने का क्या कारण है।

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एडल्ट ऑनसेट अस्थमा: जीवन में किसी भी समय अस्थमा के लक्षण दिखाई दे सकते हैं। लोगों में  50, 60, या बाद में भी अस्थमा विकसित हो सकता हैं। इस प्रकार का अस्थमा युवाओं में दिखता है अधिकांशतः  20 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों में इस अस्थमा के होने की सम्भावना शुरू हो जाती है। इस प्रकार के अस्थमा के पीछे कई एलर्जिक कारण छुपे होते हैं। कम से कम 30% वयस्क अस्थमा के मामले एलर्जी से उत्पन्न होते हैं।  हालांकि इसका मुख्य कारण प्रदूषण, प्लास्टिक, अधिक धूल मिट्टी, जलन जैसे कि सिगरेट के धुएं या रसायन से , मोल्ड और जानवरों से एलर्जी हो सकती है।

ऑक्यूपेशनल अस्थमा: अधिकाशतः इस प्रकार  की समस्या तब उत्पन्न  होती है जब आप ऐसे स्थान पर रहते हैं जहां का वातारण आपको सूट नहीं करता। ऐसे में  आपको अचानक  अस्थमा अटैक  काम के दौरान पड़ने  लगते हैं।

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नॉक्टेर्नल यानी नाइटटाइम अस्थमा: इस प्रकार का अस्थमा अक्सर आपको  रात के समय ही पड़ता है, इस लिए इसको नाइटटाइम अस्थमा के नाम से जाना जाता है।

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मिमिक अस्थमा: जब आपको कोई स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी कोई बीमारी जैसेयदि आप किसी स्वास्थ्य सम्बन्धित बीमारी जैसे  निमोनिया, कार्डिओवैस्कुलर आदि से पीड़ित हो तो ऐसे में आपको मिमिक अस्थमा हो सकता है। आमतौर पर मिमिक अस्थमा तबियत अधिक खराब होने पर होता है।

चाइल्ड ऑनसेट अस्थमा: इस प्रकार का अस्थमा  बच्चों को  प्रभावित करता है। ऐसे में जब  बच्चे अधिक सर्दी या प्रदूषण के  संपर्क में आते हैं, तो उनके  छोटे से फेफड़े और वायुमार्ग आसानी से फूल जाते हैं। इस अस्थमा के लक्षण आपके बच्चे को बाहर खेलने, या सही से सोने में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं। कई बार इसके लक्षण खतरनाक रूप ले सकते हहैं जिसके परिणामस्वरूप आपका बच्चा अस्पताल भी जा सकता है। अतः ऐसे में माता-पिता को बच्चों में अस्थमा के लक्षण पर ध्यान रखना जरूरी होता है, क्योंकि कई बार कुछ सामान्य से दिखने वाले लक्षण अस्थमा का संकेत हो सकते हैं। बच्चों में  अस्थमा के लक्षण खांसना और रात को खांसी ज्यादा होना, सीने में कसाव महसूस करना, बच्चे को सांस लेने में परेशानी होना और सांस लेते समय  सीटी जैसी आवाज निकलना हो सकते हैं। अस्‍थमैटिक बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है यह समस्या धीरे धीरे कम होती जाती है परन्तु  इसका सही समय पर उपचार होना बहुत  जरूरी होता है।

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एक्सरसाइज इनड्यूस अस्थमा: कुछ लोग जब अपने शरीर की क्षमता से अधिक काम लेते हैं तो वे एक्सरसाइज इनड्यूस अस्थमा के शिकार हो जाते हैं। ऐसा अधिक एक्सरसाइज या फिर  कोई अन्य कार्य अपनी शारीरिक  क्षमता से अधिक करने के कारण भी हो सकता है।

कफ वेरिएंट अस्थमा: जिन लोगो को अधिक कफ की शिकायत होती है या खांसी के दौरान अधिक कफ आता है  ऐसे लोगो को कफ वेरिएंट अस्थमा होने का खतरा रहता है।

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अस्थमा के लक्षण:

अस्थमा के लक्षण हर वयक्ति में अलग अलग होते हैं।  इसके लक्षण रोगी में अकसर  या फिर कभी कभी दिख सकते हैं।

  • सांस लेते समय घरघराहट या सीटी की आवाज आना
  • छाती में दर्द या जकड़न
  • सीने में जकड़न या घरघराहट के कारण सोने में परेशानी होना
  • श्वास छोड़ने के दौरान सीटी वाली आवाज़ आना
  • थकान महसूस होना
  • बहुत जोर से खाँसी आना , विशेष रूप से रात में, या  जोर से   हसने या व्यायाम करने पर
  • बलगम वाली खांसी या सूखी खांसी
  • सांस लेने में कठिनाई होना
  • रात या सुबह के समय सांस लेने में अधिक कठिनाई होना
  • ठंडी हवा में सांस लेने पर स्थति ओर  गंभीर होना
  • गंभीर स्थिति में कई बार उल्टी जैसा महसूस होना।

अस्थमा से पीड़ित हर कोई व्यक्ति इन विशेष लक्षणों का अनुभव नहीं करता । यदि आपको लगता है कि आपके द्वारा अनुभव किए जा रहे लक्षण अस्थमा जैसी स्थिति का संकेत हो सकते हैं, तो अपने डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।

अस्थमा के कारण :

अस्थमा होने का कोई एक  कारण नहीं होता है। शोध के अनुसार सांस लेने से जुडी बहुत सी परिस्थितियां  अस्थमा का कारण  बन  सकती हैं। एलर्जी कई लोगों  में आस्थमा को जन्म देने में महतव्पूर्ण भूमिका निभाती है । यदि आपको या आपके  किसी प्रियजन को अस्थमा है, तो यह जानना महत्वपूर्ण है कि आपको या आपके  किसी प्रियजन को किस चीज के ट्रिगर  से यह समस्या उत्पन्न हो रही हैं। जब आपको यह ज्ञात हो जायेगा तो उससे बचने में आसानी होगी।

इन कारकों में शामिल हैं:

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एलर्जी अस्थमा का कारण बन सकती है:

आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली का काम आपको बैक्टीरिया और वायरस से बचाना है।  जैसे ही आप किसी हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस के संपर्क में आते हैं तब ऐसे में आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली उन हानिकारक  बैक्टीरिया और वायरस  पर हमला करके आपको अस्वस्थ  होने से बचाती है। जब आपका शरीर किसी भी प्रकार की  एलर्जी से  जूझता है, तो यह IgE एंटीबॉडीज नामक रसायन बनाता है।यह IgE एंटीबॉडीज, हिस्टामाइन जैसे रसायनों  को निकालते  हैं, जो सूजन  का कारण बनते हैं साथ ही बहती नाक, खुजली वाली आँखें और छींकने जैसे  लक्षण भी उत्पन्न हो सकते हैं  क्योंकि इस दौरान आपका शरीर एलर्जी को हटाने की कोशिश करता है।

अस्थमा के साथ एलर्जी एक आम समस्या है। यदि आपको एलर्जी अस्थमा है, तो आपके वायुमार्ग कुछ प्रकार की एलर्जी के प्रति अतिरिक्त संवेदनशील होते हैं। ऐसे में जब  इस प्रकार की एलर्जी आपके शरीर के संपर्क में आती है तब  आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली खत्म हो जाती है। आपके वायुमार्ग के आसपास की मांसपेशियां कस जाती हैं। वायुमार्ग फूल जाते हैं और धीरे धीरे इनमें  गाढ़ा  बलगम  भर जाता हैं। अस्थमा से पीड़ित अस्सी प्रतिशत लोगों को हवा में उपस्थित बहुत सी वस्तुओं के कारण एलर्जी हो सकती है, जैसे कि पेड़, घास, खरपतवार, परागकण, मोल्ड, जानवरों की रूसी, धूल के कण और कॉकरोच मल आदि। एक अध्ययन के अनुसार   घरों में कॉकरोच तथा कॉकरोच  मल के  संपर्क में अधिक रहने से बच्चों में बचपन से ही अस्थमा होने की संभावना चार गुना अधिक  हो जाती है। धूल के कण से एलर्जी होना एक अन्य सामान्य अस्थमा ट्रिगर माना जाता है।

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खाद्य पदार्थों से अस्थमा :

खाद्य पदार्थ शायद ही कभी एक अस्थमा के दौरे को ट्रिगर करते हैं। लेकिन कुछ खाद्य पदार्थों के प्रति गंभीर एलर्जी के लक्षण अस्थमा के लक्षणों  जैसे  हो सकते हैं। इसके लिए पहला कदम यह जानना होना चाहिए कि आपकी किन खाद्य  पदार्थों से  एलर्जी है। खाद्य एलर्जी के कारण हल्के से लेकर गंभीर जानलेवा प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं। हालांकि किसी भी तरह के भोजन से कुछ लोगों में संवेदनशीलता या एलर्जी हो सकती है, लेकिन कुछ खाद्य पदार्थ  ऐसे होते हैं जिनके कारण समस्या होने की संभावना अधिक होती है। सबसे आम एलर्जी उत्पन्न  करने वाले  खाद्य पदार्थ  ग्लूटेन (गेहूं और अनाज उत्पादों से), शंख, अंडे, दूध,  मूंगफली के दाने , तिल और सोया आदि हो सकते हैं। दूध और अंडे से एलर्जी होना , बच्चों में अधिक आम हैं।

वातावरण द्वारा अस्थमा :

वातावरण एलर्जी अधिकाशतः शिशु  में या प्रारंभिक बचपन में वातारण  बदलने  के कारण किसी  वायरल संक्रमण के संपर्क में  आने से शुरू हो सकती है क्योकि उस समय तक शिशु की प्रतिरक्षा प्रणाली पूरी तरह से परिपक्व नहीं होती है, ऐसे में वातावरण एलर्जी  से अस्थमा विकसित होना आसान हो सकता है।  कई बार वयस्कों में  कार्यस्थल में कुछ रसायनों और धूल के संपर्क में आने से भी इस प्रकार का आस्थमा पैदा हो सकता है। वातावरणीय अस्थमा को अधिक व्यायाम, श्वसन संक्रमण और पर्यावरणीय कारकों जैसे सिगरेट का  धुआं, वायु प्रदूषण जैसे स्मॉग, ओजोन ,लकड़ी की आग, चारकोल ग्रिल्स,  पेंट, गैसोलीन, इत्र और सुगंधित साबुन आदि की गंध हवा में उपथित धूल कण, विभिन्न प्रकार के रसायन आदि के संपर्क से जोड़ा  जाता  है।

आनुवंशिक:

पारिवारिक इतिहास अस्थमा के लिए एक जोखिम कारक हो सकता है।  किसी व्यक्ति में अस्थमा विकसित होने की  प्रवृत्ति विरासत में मिल सकती है। यदि आपके माता-पिता में से किसी एक को अस्थमा है, तो  ऐसे में आपको अस्थमा होने की संभावना हो सकती है। यदि आपके माता-पिता दोनों को अस्थमा है, तो ऐसे में आपको अस्थमा विकास होने की अधिक संभावना हो सकती है। अस्थमा संक्रामक नहीं है। हालांकि इसके कारण अभी भी अज्ञात हैं, शोधकर्ताओं ने निर्धारित किया है कि अस्थमा वंशानुगत (विरासत में भी मिल सकता है ) और पर्यावरणीय कारकों दोनों के कारण हो सकता है। सिर्फ इसलिए कि आपके माता-पिता को अस्थमा है, इसका मतलब यह नहीं है कि आपको अस्थमा होने की पूरी सम्भावना है लेकिन आपको अस्थमा विकसित होने  की प्रवृत्ति विरासत में मिल सकती है अतः आपको थोड़ी देखभाल की आवश्कता हो सकती है। हालांकि कई शोधो से यह बात सामने आई है कि अस्थमा के  जीन केवल तभी सक्रिय होता है, जब इसके जीन  माँ के वंशजों से विरासत में  मिले हो। यदि इसके जीन पिता से विरासत में मिले हैं,तो संतानों को इन बीमारियों से पीड़ित होने की संभावना बहुत कम होती है।  हलाकि इस तथ्य को अभी पूरी तरह से सही नहीं माना जा सकता है इस पर अभी शोध जारी है।

रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन:

रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन में सामान्य सर्दी, फ्लू, निमोनिया और अन्य संक्रमण शामिल हैं। अस्थमा होने पर ये सामान्य बीमारियां आपके फेफड़ों को प्रभावित कर सकती हैं। वे आपके वायुमार्ग में सूजन  और संकीर्णता पैदा कर सकते हैं। ये परिवर्तन अस्थमा के लक्षणों को ट्रिगर कर सकते हैं।

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 भावनात्मक होने पर आस्थमा :

मजबूत भावनाओं (अधिक गुस्सा, डर, बहुत अधिक उत्साहित होना, काफी जोर से हसना  या  जोर जोर से रोना ) को महसूस  करने और व्यक्त करने  पर अधिकाशतः आपकी  श्वसन प्रकिर्या काफी हद तक तेज हो जाती है, जिससे आपका  श्वसन मार्ग प्रभावित  होता है, ऐसे में भी व्यक्ति को अस्थमा से जुड़े लक्षण दिख सकते हैं।

अस्थमा परीक्षण:

अधिकाशतः  डॉक्‍टर  अस्‍थमा को उसके लक्षणों से  पहचान सकते  हैं। लेकिन कभी-कभी कुछ लक्षण भ्रमित  भी करते हैं जिसकी वजह से डॉक्‍टर  को भी अस्‍थमा  की जांच  करना पड़ता  हैं, जिसके बाद डॉक्टर पूरी तरह से जान सकते हैं की आप सच में आस्थमा से पीड़ित है या नहीं।  जानकारी के बाद  रोग का इलाज कर मरीज को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है। अस्‍थमा में खासतौर से फेफड़ों की जांच की जाती है, जिसके अंतर्गत स्‍पायरोमेट्री, पीक फ्लो और फेफड़ों के कार्य का परीक्षण शामिल होता है। अस्‍थमा के निदान के लिए  मेथाकोलिन चैलेंज, नाइट्रिक ऑक्‍साइड टेस्‍ट, इमेजिंग टेस्‍ट, एलर्जी टेस्टिंग, स्प्‍यूटम ईयोसिनोफिल्‍स टेस्‍ट के अलावा व्‍यायाम और अस्‍थमा युक्‍त जुकाम के लिए प्रोवोकेटिव टेस्‍ट भी किया जाता है।

अस्थमा का उपचार:

कई बार व्यक्ति को यह पता ही  नहीं चल पाता की वह  अस्थमा से पीड़ित है या फिर काफी देर से समझ आता है कि वह अस्थमा की चपेट में आ गया है तब तक अस्थमा पर कण्ट्रोल पाना मुश्किल हो जाता है। अस्थमा का उपचार सही रूप से तभी संभव है जब आपको  समय रहते इसके बारे में पता चल जाए। ऐसे में आपको यदि अस्थमा के लक्षण प्रतीत हो तो आपको  इसके तुरंत निदान के लिए डॉक्टर के पास जाना चाहिए। अस्थमा के उपचार के लिए इसकी दवाएं बहुत कारगर हो सकती हैं। अस्थमा के इलाज के लिए  अधिकांशतः इन्हेल्ड स्टेरॉयड (नाक  द्वारा  दी जाने वाली दवा) और अन्य एंटी इंफ्लामेटरी दवाएं उपयोगी मानी जाती हैं।  इसके अलावा अस्थमा इन्हेलर का  भी प्रयोग  उपचार के तौर पर किया जाता है। इसके माध्यम से फेफड़ों में दवाईयां पहुंचाने का काम किया जाता है। अस्थमा नेब्यूलाइजर का भी प्रयोग उपचार में किया जाता है। इनहेलर थेरेपी  का उपचार आमतौर पर इनहेलर से होता है, जो  अस्थमा  की दवा लेने का सर्वश्रेष्ठ और सबसे सुरक्षित तरीका माना  जाता है। क्योंकि इनहेलर के  तेज दबाब के कारण  दवा व्यक्ति के फेफड़ों तक पहुंच जाती  है और यह तुरंत असर दिखाना शुरू कर देती है।इनहेलेशन थेरेपी  को डॉक्टर्स द्वारा सबसे अच्छाउपाय इसलिए माना जाता है क्योकि इसमें  सीरप और टैब्लेट्स की तुलना में 10 से 20 गुना  कम खुराक की  आवश्यकता  होती है और यह अधिक प्रभावी  भी होता है।

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इनहेलर दो प्रकार के होते हैं:

1- रिलीवर इनहेलर: इस प्रकार के इनहेलर उपयोग जल्दी से काम करके सांस नलिकाओं की मांसपेशियों के कसाव को कम कर देते हैं जिसकी वजह से जो आपकी सांस फूली हुई होती है उसमें तुरंत आराम मिल जाता है।

2- कंट्रोलर इनहेलर: ये सांस नलियों में सूजन को कम करके उन्हें अधिक संवेदनशील बनने से रोकते हैं और अस्थमा के गंभीर रूप को बढ़ने से रोकते हैं। कंट्रोलर इनहेलर सलाह आपका डॉक्टर अस्थमा के लक्षण न दिखने पर भी लेने की सलाह देते हैं। दोनों ही परिस्थितयों में रोगी को इनहेलर का प्रयोग सही से करने की जानकारी होनी आवश्यक होती है क्योकि कई बार इनहेलर का सही रूप से प्रयोग न करने पर दवा ठीक प्रकार से सांस नलियों तक नहीं पहुंच पाती है और इसका उचित प्रभाव देखने को नहीं मिलता है।

समस्या गंभीर होने पर डॉक्टर द्वारा अक्सर ओरल कोर्टिकोस्टेरॉयड्स देने की सलाह दी जाती है। परन्तु इस स्टेरॉयड्स का प्रयोग 15 दिन से अधिक करना सही नहीं होता है, अतः डॉक्टर के कहे अनुसार ही इस स्टेरॉयड्स का प्रयोग करना उचित होता है।

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अस्थमा से बचने के उपाय:

अस्थमा वंशानुगत और प्राकृतिक दोनों घटकों के मिश्रण के कारण होने वाली बीमारी है। ऐसे में वंशानुगत घटकों को रोकना थोड़ा मुशिकल होता है परन्तु प्राकृतिक घटकों के प्रभाव से बचा जा सकता है। प्राकृतिक घटकों से बचने के लिए हमे किन तत्वों का ध्यान रखना चाहिए आइये जानते है :

  • अस्थमा ट्रिगर की पहचान
  • एलर्जी से बचें
  • किसी भी प्रकार के स्मोक से दूरी बना कर रखें
  • सर्दी से अपने आपको बचाये
  • निर्धारित रूप से अस्थमा की दवाओं का प्रयोग करें
  • सिगरेट और सिगार के धुएं से बचें
  • अपने फेफड़ों को मजबूत बनाने के लिए सांस से संबंधित व्यायाम करें।
  • मौसम बदलने के 2  से 3  सप्ताह पहले से ही अपना विशेष रूप से ध्यान रखना शुरू कर दें।
  • खाद्य पदार्थ, जो अस्थमा को बढाने के लिए जिम्मेदार हैं उनसे परहेज
  • सोने के बिस्तर की नियमित सफाई रखें
  • व्यायाम या मेहनत का कार्य करने से पहले इनहेलर का प्रयोग करें
  • बच्चों को लंबे रोएंदार कपड़े न पहनाएं और रोऐंदार खिलौने खेलने को न दें
  • घर की सफाई, पुताई व पेंट के दौरान घर से बाहर निकल जाएँ
  • ज्यादा गर्म और ज्यादा नम वातावरण से बचना चाहिए, क्योकि इस तरह के वातावरण में मोल्ड स्पोर्स के फैलने की संभावना बढ़ जाती है। धूल मिट्टी और प्रदूषण से बचें।
  • घर से बाहर निकलने समय पर मास्क का प्रयोग करें इसका इस्तेमाल प्रदूषण से बचने में मदद करता है।
  • योग अस्थमा को कंट्रोल करने का सबसे अच्छा साधन माना जाता है। सूर्य नमस्कार, बहुत से श्वसन सम्बन्धित प्राणायाम, भुजंगासन जैसे योग अस्थमा में फायदेमंद होते हैं।

अस्थमा रोगियों के लिए आहार:

अपने डाइट में कुछ खाद्य पदार्थों को शामिल करने से आप अस्थमा के लक्षणों को कम क्र सकते हैं। अस्थमा के रोगियों को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा वाली चीजों का सेवन कम से कम करना चाहिए।कोल्ड ड्रिंक, ठंडा पानी और ठंडी प्रकृति वाले आहारों का सेवन नहीं करना चाहिए। अंडे, मछली और मांस जैसी चीजें अस्थमा में हानिकारक  हो सकती हैं।

अस्थमा के मरीजो को आहार में हरी पत्तेदार सब्जियों और फलों  का सेवन करना चाहिए। पालक और गाजर का रस अस्थमा में काफी फायदेमंद होता है। हरी पत्तेदार सब्जियों और फलों में  विटामिन ए होता है जो वायु मार्ग में श्लेष्मा झिल्ली को बनाए रखने मदद करता है।  विटामिन ए, सी और ई युक्त खाद्य पदार्थ अस्थमा के रोगियों के लिए लाभकारी होते हैं। एंटीऑक्सीडेंट युक्त फूड के सेवन से रक्त में आक्सीजन की मात्रा बढ़ती है।खट्टे फलों में विटामिन सी होता है जो सूजन को कम करता है, इसलिए अपने दैनिक आहार में नींबू को शामिल करना एक अच्छा  विकल्प होता है। आहार में लहसुन, अदरक, हल्दी और काली मिर्च को जरूर शामिल करें, क्योकि इनका सेवन श्वसन नलिकाओं के अवरोध को साफ़ करता है।

अस्थमा का घरेलू उपचार:

सामान्य रूप से, ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) दवाएं और वैकल्पिक उपचार अस्थमा के उपचार के लिए प्रोत्साहित नहीं की जाती हैं। अगर इसका सही तरीके से इलाज नहीं किया जाएतो अस्थमा जानलेवा भी हो सकता है। हालांकि, कुछ घरेलू उपचार को अपनाने से इसके लक्षणों को बढ़ने से रोका जा सकता है साथ ही यह उपाय आपातकालीन स्थिति में भी प्रभावी हो सकते हैं:

सरसों का तेल:

Musturd oil

कपूर के साथ मिश्रित सरसों का तेल अस्थमा के इलाज के लिए बहुत ही लाभकारी माना जाता है। सरसो के तेल को थोड़ा गर्म करके उसमें थोड़ा सा कपूर मिला कर सीने पर मालिश करने से बहुत लाभ मिलता है।

नीलगिरी का तेल:

Eucalyptus oil

 

नीलगिरी के तेल को अस्थमा को कंट्रोल में रखने का रामवाण इलाज माना  जाता है। एक बर्तन में पानी को तेज गरम करके उसमें  नीलगिरी के  तेल की कुछ बूंदें मिलाएं और इसकी भाप लें। इसके प्रयोक से नाक की रुकावट को खोलने में  मदद मिलती है।

मैथी का पानी:

 

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एक चम्मच मैथीदाना को एक कप पानी के साथ उबालें और हर रोज सुबह-शाम इस  पानी  का  सेवन करने से निश्चित लाभ मिलेगा।

अदरक:

ginger

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अदरक को एक सुपरफूड माना जाता है। अदरक को थोड़े से पानी में डाल कर उसे खौला लें फिर उसको छान कर दिन में दो तीन बार पिए, लाभ मिलेगा।

दूध और लहसून:

milk and gralic

लगभग एक कप दूध में लहसुन की 3 कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज नियमित रूप से सेवन करें।

कॉफ़ी

coffee with ghee

कॉफी में मौजूद कैफीन अस्थमा के इलाज में मदद करता है। यह नाक को साफ़ करके आपको सही रूप से सांस लेने में मदद करता है। दिन में कम से कम २ से 3 कप काफी का सेवन आपको लाभ दे सकता है परन्तु इससे अधिक काफी का सेवन आपको नुक्सान भी पंहुचा सकता है।

अजवाइन का पानी:

ajwain water

पानी में अजवाइन मिलाकर इसे उबालें और फिर इस पानी से भाप लें, या छान कर इस पानी को दिन में दो-तीन बार पियें।

आंवला पाउडर:

AMLA POWDER

अस्थमा को नियंत्रित करने में आंवला पाउडर बहुत ही लाभकारी होता है। इसके लिए दो चम्मच आंवला पाउडर में एक चम्मच शहद मिलाकर नियमित रूप से सेवन करें।

पीपल के पत्ते

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पीपल के पत्तों को अच्छे से धो कर इनको सूखा लें फिर इनको जला लें। इसके बाद इन्हें छानकर इसमें शहद  मिलाकर  दिन में दो तीन बार चाटें। दिन में दो से तीन  इसका  प्रयोग लगातार कुछ दिन तक करने से आपकी समस्या जड़ से खत्म हो सकती है ।

लौंग का पानी:

4-5 लौंग लें और एक कप पानी में 5 मिनट तक उबालें अब इस मिश्रण को छानकर इसमें एक चम्मच शहद मिला कर गरम-गरम हर रोज दो से तीन बार पिएं इसके सेवन से आपको निश्चित रूप से लाभ होगा।

लैवेंडर ऑयल:

एक बर्तन में पानी गर्म करके पांच−छह बूंदे लैवेंडर ऑयल की डालें और इसकी भाप करीबन पांच से दस मिनट तक लें। लैवेंडर का तेल वायुमार्ग की सूजन को कम करके कफ  को  नियंत्रित करता है। जिससे आपके वायुमार्ग को आराम मिलता है और साथ ही साथ प्रतिरक्षा तंत्र भी मजबूत होता है।

हल्दी:

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एक गिलास पानी या दूध में एक चौथाई चम्मच हल्दी मिलाकर उसका सेवन करें। हल्दी एक बेहतरीन एंटीमाइक्रोबॉयल एजेंट है। साथ ही इसमें कर्क्युमिन भी पाया जाता है, जो अस्थमा से लड़ने में मददगार होता है।

तुलसी:

tulsi

तुलसी के पत्तों को पानी की मदद से अच्छे से पीस लें। इसके बाद इसमें शहद मिक्स करके इसका सेवन करें। कुछ दिनों तक लगातार इसके सेवन से आपको बहुत लाभ होगा।